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बुधवार, जून 08, 2011

ना जा सोन चिरैया


संरक्षणकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि दुनिया की सबसे वज़नदार पक्षियों में से एक सोन चिरैया की प्रजाति लुप्त होने की कगार पर है.
सोन चिरैया एक मीटर उंची होती है और इसका वज़न 15 किलो होता है. इंटरनेश्नल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर का कहना है कि अब केवल 250 सोन चिरैया ही बची हैं.
इंटरनेश्नल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर यानि आईयूसीएन द्वारा जारी की गई पक्षियों की ‘रेड लिस्ट’ में कहा गया है कि लुप्त होने वाले पक्षियों की तादाद अब 1,253 हो गई है, जिसका मतलब है कि पक्षियों की सभी प्रजातियों में से 13 प्रतिशत के लुप्त हो जाने का ख़तरा है.
2011 के आईयूसीएन अंक में विश्व की पक्षियों की प्रजातियों की बदलती संभावनाओं और स्थिति का आकलन किया गया है.
आईयूसीएन के वैश्विक प्रजाति योजना के उप निदेशक ज़ॉ क्रिस्टॉफ़ वाई ने कहा, “एक साल के अंतराल में पक्षियों की 13 प्रजातियां दुर्लभ वर्ग में शामिल हो गई हैं.”
विश्व भर में पक्षियों की 189 प्रजातियों को गंभीर रूप से विलुप्त हो चुकी है, जिसमें सोन चिरैया भी शामिल है.
सोन चिरैया को कभी भारत और पाकिस्तान की घासभूमि में पाया जाता था, लेकिन अब इसे केवल एकांत भरे क्षेत्रों में देखा जाता है. आख़िरी बार राजस्थान में इस अनोखे पक्षी का गढ़ माना गया था.
दूसरी प्रजाति जो विलुप्त होने की कगार पर है, वो है बहामा ओरियोल. ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार इस काले और पीले रंग के केवल 180 पक्षी बचे हैं.
बहामा ओरियोल वनस्थलों में रहते हैं और नारियल के पेड़ों पर घोसला बनाती है. ये पक्षी दूसरे पक्षियों के घोसलों में अपने अंडे देती है.
लेकिन कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं जिनकी जनसंख्या में पिछले एक साल में इजाफ़ा देखने को मिला है.
प्रजनन संबंधी योजनाओं के परिणाम से न्यूज़ीलैंड के कैंपबैल आइलैंड में पाई जाने वाली छोटी बत्तख एनास नेसियोटिस की तादाद पिछले एक साल में बढ़ी है.
इन पक्षियों ने पिछले एक साल में न्यूज़ीलैंड के कैंपबैल आइलैंड में वापस आना शुरू कर दिया है.
विश्व भर में विलुप्त होने वाली पक्षियों में से ज़्यादातर जंगल के इलाकों में पाए जानी वाली पक्षियों के विलुप्त होने का डर रहता है.
बर्ड लाइफ़ इंटरनेश्नल के मुताबिक पिछले 500 सालों में कम से कम 65 पक्षी की प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए आक्रामक प्रजातियों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.


    आगरा की सीमा में 1972 तक ये सहज दिख जाया करती थीं। ब्रज क्षेत्र में इन्हें मंगल और शुभ का प्रतीक माना जाता था। इसके बाद धौलपुर और ग्वालियर संभाग में ये कभी-कभार दिख जाया करती थीं। अब तो मप्र में ही इनकी संख्या केवल 20 रह गई है। बृहद क्षेत्र में विचरण करने वाला यह पक्षी लगभग शुतुरमुर्ग जैसा लगता है, जिसका कारण इसकी लंबी टांगे हैं। नर पक्षी का वजन 8 से 14.5 किलो के बीच और आकार में 48 इंच तक लम्बा होता है। वहीं मादा की लंबाई 32 इंच तक, जबकि वजन 3.5 से 6.75 किलो के बीच होता है।
    गहरे मटमैले रंग के नर के सिर पर काले रंग की कलगी होती है, जबकि मादा के सिर पर कलगी छोटी या न मालूम स्थिति की होती है। इस समय देश के पांच पक्षी अभ्यारण्यों में इनके संरक्षण के उपाय चल रहे हैं। इनमें करेरा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी [शिवपुरी] मुख्य है। सोन चिरैया की दुर्लभता का अहसास इंडियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड को 1952 में हुआ। तभी से इसे संरक्षित सूची में शामिल कर लिया गया। इंटरनेशनल यूनियन फार कंजरवेशन आफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्स [आईयूसीएन] की 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में संपन्न जनरल असेंबली में पुन: इसके संरक्षण को कार्यक्रम तय हुआ। उस समय इनकी संख्या 1260 अनुमानित की गई थी। इस दृष्टि से माना जा सकता है कि संख्या में गिरावट का क्रम तो अब भी जारी है, लेकिन इसके प्रतिशत में अवश्य कमी आई। इसका एक अन्य कारण इनके स्वाभाविक ठिकानों में निरंतर कमी आते जाना और एक जोड़े द्वारा एक बार में केवल एक ही अंडा दिया जाना है।
    अब सिर्फ मिंट्टी का खिलौना
    -भले ही सोन चिरैया अब कम दिखती हो, लेकिन लोक कथाओं में यह अब भी बरकरार है। यही वजह है कि मिट्टी के खिलौनों में जो पक्षी हाट-मेलों में प्रजापति समाज के शिल्पकार अक्सर लेकर पहुंचते हैं, उनमें तोतों के बाद इन्हीं की सबसे अधिक संख्या होती है।