तितरम मोड़ क्या है?

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सम्भव(SAMBHAV - Social Action for Mobilisation & Betterment of Human through Audio-Visuals) सामाजिक एवं सांस्कृतिक सरोकारों को समर्पित मंच है. हमारा विश्वास है कि जन-सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर जन-भागीदारी सुनिश्चित करके समाज को आगे ले जाना मुमकिन है.

शुक्रवार, दिसंबर 09, 2011

“गई कित?”

इसे भतेरे ढ़ोंगी बाबा सैं जिनका प्रवचन कोए ना सुणता ! इसा ए एक बाबा कुरुक्षेत्र में आ-ग्या, उसनै सोच्या अक ये हरयाणा आळे तै बड़े भोळे-भाळे सैं, कोए तै मेरा प्रवचन मुफ्त में सुण ए लेगा !
बाबा नै एक छोरा स्कूल में जाता देख्या । उसनै फट-दे नै एक मोमबत्ती जळाई अर छोरे धोरै गया अर बोल्या - बेटा, तुम्हें पता है कि यह लौ कहां से आई है ?
छोरे नै सोच्या अक जै इस ताहीं जवाब दिया तै इसके प्रवचन चालू हो ज्यांगे ।
छोरे नै उस मोमबत्ती कै फूक मारी अर बोल्या - महाराज, या कित्तै तैं आई हो, पर न्यूं बता अक या सुसरी गई कित?