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बुधवार, सितंबर 29, 2010

अनुवाद दिवस

बहुत कम लोग जानते हैं कि 30 सितम्बर को विश्व अनुवाद दिवस होता है. जिस प्रकार किसी भी भाषा मैं मौलिक लेखन का अपना महत्व है उसी तरह अनुवाद ने भी मानव संस्कृति एवं साहित्य के विकास मैं मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कल्पना कीजिये अगर विश्व के श्रेष्ठतम साहित्य का विभिन्न भाषाओं मैं अनुवाद न हुआ होता तो अलग अलग समाज मात्र कूप मंडूक ही बने रहते और दुनिया के भिन्न भाषा वाले दूसरे समाजों में क्या हो रहा है इस बारे में उन्हें कोई ज्ञान न होता.

भारत में अगर भारतीय साहित्य के पश्चात अगर किसी और साहित्य को सबसे अधिक पढ़ा गया है तो वह रूसी साहित्य है. एक दौर में रूसी साहित्य का हिंदी अनुवाद भारत में खूब बिकता था और पढ़ा जाता था. याद कीजिये रादुगा प्रकाशन की किताबें. गोर्की, तोल्स्तोय दोस्तोवस्की और दूसरे महान रूसी लेखकों को भारत की दो तीन पीढ़ियों में से अधिकांश ने उन्हें हिंदी में ही पढ़ा होगा. इसके अतिरिक्त और भी न जाने विश्व भर के कितने ही लेखकों के हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओँ में अनुवाद उपलब्ध हैं. टैगोर और गाँधी जी के लेखन को विश्व की लगभग सभी भाषाओँ में अनूदित किया गया है. पूरा विश्व इन नामों से परिचित है इसका मुख्य श्रेय अनुवाद को भी जाता है.

अधिकांश लोगों का मानना है कि अनुवाद कला मात्र कोई सौ दो सौ साल पुरानी है लेकिन सच यह है कि अनुवाद कला अत्यंत प्राचीन है ये बात और है कि इसकी लोकप्रियता पिछली दो तीन सदी में बढ़ी. आज तो आलम ये है कि किसी भी प्रतिष्ठित लेखक की पुस्तक एक साथ कई भाषाओं में प्रकाशित होती है और एक ही साथ दुनिया के अलग अलग देशों के अलग अलग अलग भाषा जानने वाले लोगों के बीच पहुँच जाती है.
बाइबल दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है. और बाइबल ही उन विरली पुस्तकों में से एक है जिसका विश्व की हर भाषा में अनुवाद हुआ है. अनुवाद कला का सम्बन्ध भी बाइबल से ही है.

अनुवाद दिवस सेंट जेरोम की याद मनाया जाता है. सेंट जेरोम की वास्तविक जन्मतिथि के बारे में इतिहास में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है पर यह माना जाता है कि उनका जन्म सन 340-42 के आसपास क्रोअशिया के एक छोटे से शहर स्त्रिदों में हुआ था . उनकी मृत्यु की वास्तविक तिथि इतिहास में दर्ज है क्योंकि उन्होंने जीवन भर ऐसे कामों को अंजाम दिया जिसकी नींव पर विश्व साहित्य के विकास की इमारत बुलंद होती चली गई. सेंट जेरोम की मृत्यु 30 सितम्बर 420 को पेलेस्तीन के बेथलेहम नाम के शहर में हुई थी. उन्ही की स्मृति में विश्व भर में अनुवाद दिवस मनाया जाता है. सेंट जेरोम नें ही बाइबल का पहला लेटिन अनुवाद किया और उन्होंने अनुवाद कला पर कई महत्वपूर्ण लेख लिखे.

390 और 405 के बीच, सेंट जेरोम नें 'ओल्ड टेस्टामेंट' का हिब्रु से अनुवाद किया. इस बीच उन्होंने 'बुक्स ऑफ सैमुअल एंड ऑफ किंग्स', और 'न्यू टेस्टामेंट' जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकों के साथ साथ दर्शन एवं रहस्यवाद के विभिन्न ग्रंथों का भी अनुवाद किया एवं समकालीन बाइबल ग्रंथो पर विभिन्न भाषाओँ में टीकाएं लिखी. सेंट जेरोम के बारे में कहा जाता है की उन्होंने अत्यंत तेजी से अनुवाद एवं लेखन कार्य किया क्योंकि वे चाहते थे की अपने जीवन काल में ही वे उपलब्ध सभी ग्रंथो का अनुवाद कर लें अथवा विभिन्न भाषाओँ में अपनी टिप्पणियाँ दर्ज कर दे. इसीलये इतिहासकारों के अनुसार उनके लेखन एवं अनुवादों में कहीं कहीं असमानता भी नज़र आती है. सेंट जेरोम नें भी अपने जीवन के अंतिम वर्षों में लिखा है कि वह कई चीज़ों की और बेहतर व्याख्या कर सकते थे. लेकिन इस से उनके कार्य का महत्व कम नहीं हो जाता. क्योंकि अपनी विरासत में सेंट जेरोम विश्व को ऐसी विधा दे गए जिसने साहित्य के विकास में महत्ती भूमिका निभाई.

हालाँकि अनुवाद दिवस मनाने का चलन बहुत पुराना नहीं है.यद्यपि पहले भी सेंट जेरोम की स्मृति में 30 सितम्बर को कई देशों में कई कार्यक्रम आयोजित् किये जाते थे परन्तु वर्ष 1991 में विश्व के अग्रणी अनुवादकों ने इस दिन को अधिकारिक तौर पर अनुवाद दिवस के मनाने का निर्णय किया. इस दिन कई देशों में अनुवाद सम्बन्धी कई कार्यक्रम, कार्यशालाएं, गोष्टियाँ, सेमीनार इत्यादि आयोजित किये जाते हैं. भारत में भी अनुवादकों द्वारा इस तरह की पहल की आवश्यता है.
कुमार मुकेश