वह मात्र सात आठ साल का होगा. जब से अपने पैरों से चलना शुरू किया था तब से वह कभी अपनी मां , कभी अपने पिता तो कभी बड़े भाई बहनों के साथ मिलकर काम पर निलकने लगा था. आज इतफ़ाक से वह अपने पिता के साथ था. कूड़ा बीनते बीनते उसके हाथ एक बड़ा सा कागज़ लगा जिस पर रंगबिरंगी आडी-तिरछी रेखाएं खिंची थी.
'यह क्या है बापू?'
बाप ने एक सरसरी निगाह दौड़ाई, 'नक्शा है.'
'वह क्या होता है?'
'नक़्शे को देख पर यह पता लग जाता है की कौन सी जगह कहाँ पर है.'
'इसमें अपना घर कहाँ पर है?'
बाप समझदार मालूम होता था. बेटा निराश न हो जाए इसलिए उसने उत्तर दिया,'नक्शा पूरा नहीं हैं न, जो कोना फट गया है उसी हिस्से में शायद हमारा घर है.'
बच्चा कूड़े में और तेज़ी से कुछ ढूँढने लगा.'
क्या खोज रहे हो?' बाप ने पूछा .
'अपना घर. वो मिल जाये तो फिर पुलिया के नीचे नहीं सोना पड़ेगा न.'
दोनों अपने काम पर लगे रहे.
रात बच्चा पुलिया के नीचे बैठे बैठे निश्चय कर रहा था की कल वो बड़े ढेर में से नक़्शे का बाकी टुकड़ा ढूंढेगा.