रोज़ होती है वो मेरे साथ
सुबह, शाम
ना जाने कितने सालों से
मेरे साथ टहलती है,
सोचती है..
हँसती है
रोती भी है
मेरी अधूरी कविता
सुबह, शाम
ना जाने कितने सालों से
मेरे साथ टहलती है,
सोचती है..
हँसती है
रोती भी है
मेरी अधूरी कविता
तितरम मोड़ यूँ तो हरियाणा के एक हाइवे पर स्थित एक सामान्य तिराहा है-एक टी-प्वायंट, जहाँ से एक रास्ता राज्य की राजधानी को, एक दिल्ली को और तीसरा अन्य शहरों, कस्बों को जाता है.. यहाँ चौबीसों घंटे आम-आदमी बस या किसी और साधन की प्रतीक्षा करते और बीच-बीच में हूटर बजाती दनादन गुजरती गाड़ियों को तकता देखा जा सकता है. उसी आम आदमी की उम्मीदों को समर्पित है यह ब्लॉग. इसके निकट है 'सम्भव' द्वारा स्थापित प्रेमचंद पुस्तकालय और एक केन्द्र.वहीँ से ये ब्लॉग भी चलता है.