तितरम मोड़ यूँ तो हरियाणा के एक हाइवे पर स्थित एक सामान्य तिराहा है-एक टी-प्वायंट, जहाँ से एक रास्ता राज्य की राजधानी को, एक दिल्ली को और तीसरा अन्य शहरों, कस्बों को जाता है.. यहाँ चौबीसों घंटे आम-आदमी बस या किसी और साधन की प्रतीक्षा करते और बीच-बीच में हूटर बजाती दनादन गुजरती गाड़ियों को तकता देखा जा सकता है. उसी आम आदमी की उम्मीदों को समर्पित है यह ब्लॉग. इसके निकट है 'सम्भव' द्वारा स्थापित प्रेमचंद पुस्तकालय और एक केन्द्र.वहीँ से ये ब्लॉग भी चलता है.
तितरम मोड़ क्या है?
- कुमार मुकेश
- सम्भव(SAMBHAV - Social Action for Mobilisation & Betterment of Human through Audio-Visuals) सामाजिक एवं सांस्कृतिक सरोकारों को समर्पित मंच है. हमारा विश्वास है कि जन-सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर जन-भागीदारी सुनिश्चित करके समाज को आगे ले जाना मुमकिन है.
गुरुवार, अक्टूबर 09, 2014
चे - 1997. मारियो बेनेदेती की कविता
उन्होंने उसे ढक दिया है
पोस्टरों और बैनरों से
दीवारों पर लिखे नारों से
पूर्वव्यापी अपराधों से
उन सम्मानों से जो देर से प्राप्त होते हैं
बदल दिया है एक उत्पाद में
एक तुच्छ याद में
एक दूरस्थ अतीत में
रोष की भावना का शवलेप कर सुरक्षित कर दिया है उसे
उन्होंने फैसला कर लिया है
करेंगे उसका इस्तेमाल उपसंहार के तौर पर
बेकार मासूमियत की आख़िरी उखड़ी सांस के तौर पर
किसी सन्त या शैतान के जीर्ण असली नमूने के तौर पर
और शायद उन्होंने जान लिया है कि यही एक रास्ता है
उससे पीछा छूड़ाने का
या उसको रोशनी को निचोड़ कर
उसे धुंधला कर देने का
उसकी संगमरमरी मूर्तियाँ बना कर
या उसे प्लस्तर का नायक बनाकर
ताकि वो गतिहीन हो जाए
किसी मिथक अथवा अतीत के किसी काले छायाचित्र या वेताल की तरह
पर फिर भी
चे
की कभी न बंद होने वाली आँखें
हमें ताकती रहतीं हैं क्योंकि वे कभी रुक नहीं सकती
ये आँखे शायद यह देखकर हैरान है
कि दुनिया आखिर समझती क्यों नहीं
कि तीस साल बाद भी वो लड़ रहा है
मानवता की ख़ुशी के लिए
बेचैनी और बहादुरी के साथ
(अनुवाद : कुमार मुकेश)
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