तितरम मोड़ यूँ तो हरियाणा के एक हाइवे पर स्थित एक सामान्य तिराहा है-एक टी-प्वायंट, जहाँ से एक रास्ता राज्य की राजधानी को, एक दिल्ली को और तीसरा अन्य शहरों, कस्बों को जाता है.. यहाँ चौबीसों घंटे आम-आदमी बस या किसी और साधन की प्रतीक्षा करते और बीच-बीच में हूटर बजाती दनादन गुजरती गाड़ियों को तकता देखा जा सकता है. उसी आम आदमी की उम्मीदों को समर्पित है यह ब्लॉग. इसके निकट है 'सम्भव' द्वारा स्थापित प्रेमचंद पुस्तकालय और एक केन्द्र.वहीँ से ये ब्लॉग भी चलता है.
तितरम मोड़ क्या है?
- कुमार मुकेश
- सम्भव(SAMBHAV - Social Action for Mobilisation & Betterment of Human through Audio-Visuals) सामाजिक एवं सांस्कृतिक सरोकारों को समर्पित मंच है. हमारा विश्वास है कि जन-सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर जन-भागीदारी सुनिश्चित करके समाज को आगे ले जाना मुमकिन है.
मंगलवार, मार्च 27, 2012
दन्तेवाड़ा वाणी: अभी गौरैया जिन्दा है
दन्तेवाड़ा वाणी: अभी गौरैया जिन्दा है: अभी गौरैया जिन्दा है बहुत दिनों के बाद आज सुबह गौरैया को देखा | मन की निराशा दूर हुई | क्योंकि कुछ दिनों से मैं सोच रहा था सब गौरैया मर...
गुरुवार, मार्च 15, 2012
दोस्त / अंशु मालवीय
आश्वसित
मुँह से क्या कहूँ,
मेरा तो पूरा वजूद
तेरे लिये शुभकामना है मेरे दोस्त !
तुझे क्या बताऊँ
कि बिना दोस्त के नास्तिक नहीं हुआ जा सकता –
समाज में असुरक्षा है बहुत,
आदमी के डर ने बनाया है ईश्वर
और उसके साहस ने बनाई है दोस्ती
तुझसे क्या क़रार लूँ,
तेरा पूरा वजूद ही
मेरे लिये आश्वस्ति है
मुँह से क्या कहूँ,
मेरा तो पूरा वजूद
तेरे लिये शुभकामना है मेरे दोस्त !
तुझे क्या बताऊँ
कि बिना दोस्त के नास्तिक नहीं हुआ जा सकता –
समाज में असुरक्षा है बहुत,
आदमी के डर ने बनाया है ईश्वर
और उसके साहस ने बनाई है दोस्ती
तुझसे क्या क़रार लूँ,
तेरा पूरा वजूद ही
मेरे लिये आश्वस्ति है
अकेले ... और ... अछूत / अंशु मालवीय
... हम तुमसे क्या उम्मीद करते
बाम्हन देव!
तुमने तो ख़ुद अपने शरीर के
बायें हिस्से को अछूत बना डाला,
बनाया पैरों को अछूत
रंभाते रहे मां ... मां ... और मां
और मातृत्व रस के
रक्ताभ धब्बों को बना दिया अछूत
हमारे चलने को कहा रेंगना
भाषा को अछूत बना दिया
छंद को, दिशा को
वृक्षों को, पंछियों को
समय को, नदियों को
एक-एक कर सारी सदियों को
बना दिया अछूत
सब कुछ बांटा
किया विघटन में विकास
और अब देखो बाम्हन देव
इतना सब कुछ करते हुए
आज अकेले बचे तुम
अकेले ... और ... अछूत.
बाम्हन देव!
तुमने तो ख़ुद अपने शरीर के
बायें हिस्से को अछूत बना डाला,
बनाया पैरों को अछूत
रंभाते रहे मां ... मां ... और मां
और मातृत्व रस के
रक्ताभ धब्बों को बना दिया अछूत
हमारे चलने को कहा रेंगना
भाषा को अछूत बना दिया
छंद को, दिशा को
वृक्षों को, पंछियों को
समय को, नदियों को
एक-एक कर सारी सदियों को
बना दिया अछूत
सब कुछ बांटा
किया विघटन में विकास
और अब देखो बाम्हन देव
इतना सब कुछ करते हुए
आज अकेले बचे तुम
अकेले ... और ... अछूत.
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